मेजर ध्यान चंद

DHYAN

प्रस्तावना:-  ध्यानचंद भारत के महान हॉकी प्लेयर थे, उन्हें दुनिया के महान हॉकी प्लेयर में से एक माना जाता है. ध्यान चन्द्र को अपने अलग तरीके से गोल करने के लिए याद किया जाता है, उन्होंने भारत देश को लगातार तीन बार ओलिंपिक में स्वर्ण पदक दिलवाया था. अंतराष्ट्रीय ओलंपिक दिवस का इतिहास जानने के लिए पढ़े. यह वह समय था, जब  भारत की हॉकी टीम में सबसे प्रमुख टीम हुआ करती थी. ध्यानचंद का बॉल में पकड़ बहुत अच्छी थी, इसलिए उन्हें ‘दी विज़ार्ड’ कहा जाता था. ध्यानचंद ने अपने अन्तराष्ट्रीय खेल के सफर में 400 से अधिक गोल किये थे. उन्होंने अपना आखिरी अन्तराष्ट्रीय मैच 1948 में खेला था. ध्यानचंद को अनेको अवार्ड से सम्मानित किया गया है|

हॉकी खिलाड़ी ध्यानचन्द्र जीवन परिचय :-

क्रमांक जीवन परिचय बिंदु ध्यानचंद जीवन परिचय
1. पूरा नाम ध्यानचंद
2. जन्म 29 अगस्त 1905
3. जन्म स्थान इलाहबाद, उत्तरप्रदेश
4. पिता समेश्वर दत्त सिंह
5. हाइट 5 फीट 7 इंच
6. प्लेयिंग पोजीशन फॉरवर्ड
7. भारत के लिए खेले 1926 से 1948 तक
8. मृत्यु 3 दिसम्बर 1979

                                            ध्यानचंद का जन्म उत्तरप्रदेश के इलाहबाद में 29 अगस्त 1905 को हुआ था. वे कुशवाहा, मौर्य परिवार के थे. उनके पिता का नाम समेश्वर सिंह था, जो ब्रिटिश इंडियन आर्मी में एक सूबेदार के रूप कार्यरत थे, साथ ही हॉकी गेम खेला करते थे. ध्यानचंद के दो भाई थे, मूल सिंह एवं रूप सिंह. रूप सिंह भी ध्यानचंद की तरह होकी खेला करते थे, जो अच्छे खिलाड़ी थे. ध्यानचंद के पिता समेश्वर आर्मी में थे, जिस वजह से उनका तबादला आये दिन कही न कही होता रहता था. इस वजह से ध्यानचंद ने कक्षा छठवीं के बाद अपनी पढाई छोड़ दी. बाद में ध्यानचंद के पिता उत्तरप्रदेश के झाँसी में जा बसे थे.

हॉकी की शुरुवात: युवास्था में ध्यानचंद को होकी से बिलकुल लगाव नहीं था, उन्हें रेसलिंग बहुत पसंद थी. उन्होंने होकी खेलना अपने आस पास के दोस्तों के साथ खेलना शुरू किया था, जो पेड़ की डाली से होकी स्टिक बनाते थे, और पुराने कपड़ों से बॉल बनाया करते थे. 14 साल की उम्र में वे एक होकी मैच देखने अपने पिता के साथ गए, वहां एक टीम 2 गोल से हार रही थी. ध्यानचंद ने अपने पिता को कहाँ कि वो इस हारने वाली टीम के लिए खेलना चाहते थे. वो आर्मी वालों का मैच था, तो उनके पिता ने ध्यानचंद को खेलने की इजाज़त दे दी. ध्यानचंद ने उस मैच में 4 गोल किये. उनके इस रवैये और आत्मविश्वास को देख आर्मी ऑफिसर बहुत खुश हुए, और उन्हें आर्मी ज्वाइन करने को कहा.

       1922 में 16 साल की उम्र में ध्यानचंद पंजाब रेजिमेंट से एक सिपाही बन गए. आर्मी में आने के बाद ध्यानचंद ने होकी खेलना अच्छे से शुरू किया, और उन्हें ये पसंद आने लगा. सूबेदार मेजर भोले तिवार जो ब्राह्मण रेजिमेंट से थे, वे आर्मी में ध्यानचंद के मेंटर बने, और उन्हें खेल के बारे में बेसिक ज्ञान दिया. पंकज गुप्ता ध्यानचंद के पहले कोच कहे जाते थे, उन्होंने ध्यानचंद के खेल को देखकर कह दिया था कि ये एक दिन पूरी दुनिया में चाँद की तरह चमकेगा. उन्ही ने ध्यानचंद को चन्द नाम दिया, जिसके बाद उनके करीबी उन्हें इसी नाम से पुकारने लगे. इसके बाद ध्यान सिंह, ध्यान चन्द बन गया.

ध्यानचंद मृत्यु  –

ध्यानचंद के आखिरी दिन अच्छे नहीं रहे. ओलिंपिक मैच में भारत को स्वर्ण पदक दिलाने के बावजूद भारत देश उन्हें भूल गया. उनके आखिरी दिनों में उन्हें पैसों की भी कमी थी. उन्हें लीवर में कैंसर हो गया था, उन्हें दिल्ली के AIIMS हॉस्पिटल के जनरल वार्ड में भर्ती कराया गया था. उनका देहांत 3 दिसम्बर 1979 को हुआ था.

ध्यानचंद अवार्ड्स व अचीवमेंट  –

  • 1956 में भारत के दुसरे सबसे बड़े सम्मान पद्म भूषण से ध्यानचंद को सम्मानित किया गया था.
  • उनके जन्मदिवस को नेशनल स्पोर्ट्स डे की तरह मनाया जाता है.
  • ध्यानचंद की याद में डाक टिकट शुरू की गई थी.
  • दिल्ली में ध्यानचंद नेशनल स्टेडियम का निर्माण कराया गया था|

ध्यानचंद की प्रस्नोत्तरी खेलने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें|images

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सफलता के मूल-मंत्र

प्रस्तावना

बहुत से लोग ऐसे होते हैं, जो अथक प्रयासों के बावजूद भी जीवन में असफलता और हार का मुंह देखते हैं। ऐसे लोग यही सोचते हैं कि सफलता उनके भाग्य में ही नहीं है। लेकिन व्यक्ति को कभी भी हार से घबराना नहीं चाहिए। डेल कार्नेगी ने भी कहा था कि असफलता से सफलता का सृजन कीजिए। निराशा और असफलता, सफलता के दो निश्चित आधार स्तंभ हैं। बस जरूरत है तो खुद में कुछ बदलाव करने की। तो चलिए आज हम आपको ऐसी कुछ बातों के बारे में बता रहे हैं, जिन्हें छोड़ने के बाद जीवन में सफलता बेहद आसानी से पाई जा सकती हैं−

 लक्ष्य निर्धारण

हर व्यक्ति के जीवन का फलसफा अलग होता है। किसी के लिए सफलता का मतलब बहुत नाम व पैसा कमाना होता है तो कोई अपने काम में खुशी ढूंढकर सफलता का अहसास करता है। इसलिए सफलता हासिल करने के लिए आप सबसे पहले दूसरों की बातों को सुनना बंद करें और खुद से यह सवाल करें कि आप अपने जीवन से क्या चाहते हैं। जब आपको जवाब मिल जाए तो उसे पूरा करने में जुट जाएं। स्वामी विवेकानंद ने भी कहा था कि अपने जीवन का लक्ष्य निर्धारित करो और सभी दूसरे विचार को अपने दिमाग से निकाल दो। यही सफलता की पूंजी है।

 निर्णय क्षमता

जीवन में वही व्यक्ति आगे बढ़ता है, जो अपने जीवन में कुछ कठोर निर्णय लेता है। कुछ लोगों के निर्णय उन्हें नई ऊंचाइयों तक ले जाते हैं तो कभी−कभी गलत निर्णय के कारण आपको सबकुछ शुरू से शुरू करना पड़ता है। लेकिन इसका तात्पर्य यह नहीं है कि हार के डर से व्यक्ति निर्णय लेना ही छोड़ दें। असमंजस की स्थिति में व्यक्ति किसी निर्णय पर नहीं पहुंचता और कुछ अच्छे अवसर उसके हाथ से छूट जाते हैं। इसलिए बाद में पछताने से अच्छा है कि आप खुद पर भरोसा करें और हिम्मत करके कुछ जटिल निर्णय लेना भी सीखें।

 कमियों को स्वीकारना

यह एक विश्वव्यापी सत्य है कि जीवन में कोई भी व्यक्ति परफेक्ट नहीं होता। हर किसी में कुछ न कुछ कमियां अवश्य होती हैं। लेकिन अगर व्यक्ति न सिर्फ उन कमियों को पहचानें, बल्कि उन्हें स्वीकार करके अपनी कमियों को ही अपनी खूबी बना लेता है तो कोई भी उन्हें सफल होने से नहीं रोक सकता। वहीं कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं जो भूतकाल में हुई अपनी गलतियों का रोना रोते रहते हैं और खुद पर विश्वास करना ही छोड़ देते हैं। ऐसे व्यक्ति जीवन में कभी भी सफलता का स्वाद नहीं चख पाते। मेल्कम फोर्ब्स के शब्दों में, असफलता सफलता है, यदि हम उससे सीख लें तो।

 जैसा कि आप सभी जानते हैं हर असफलता के पीछे सफलता छुपी होती है उसी प्रकार हम सभी को अपने जीवन में निरंतर सफल होने के प्रयास करते रहना चाहिए। इसी परिपेक्ष्य से संबंधित में आप सबके सामने सफलता से प्रेरित कहानी लेकर उपस्थित हुआ हुँ। जिसका शीर्षक है,

सफलता की कहानी  इस कहानी का वीडियो देखने के लिये नीचे  क्लिक करें।👇

Safalta Ki Kahani